भगवान श्री कृष्ण के बचपन का मित्र होकर भी सुदामा गरीब क्यों रहा
गुंदरई में 25 दिसंबर 2023 से श्रीमद् भागवत कथा साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ का आयोजन चल रहा है, छोटेलाल पटेल द्वारा संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन स्वर्गीय सुनील पटेल की स्मृति में किया गया है जिसका समापन दिनांक 31 दिसंबर 2023 को होगा l वृंदावन धाम से पधारे कथा व्यास परम श्रद्धेय श्री अरुण कृष्ण जी महाराज श्रद्धालुओं को मधुर संगीतमय कथा का रसपान करा रहे हैं lआज कथा के छठवें दिवस महाराज जी द्वारा सुदामा चरित्र की कथा सुनाई गई सुदामा चरित्र के माध्यम से महाराज जी ने मित्रता का महत्व बताया मित्र का महत्व बताते हुए कहा कि जीवन में सुदामा जैसा मित्र मिल पाना बड़ा ही असंभव हैl सुदामा जिसने भगवान श्री कृष्ण को जीवन में मिलने वाली दरिद्रता और गरीबों को भी अपने जीवन में स्वीकार कर श्री कृष्ण को गरीबी और दरिद्रता से बचाया l
सुदामा भगवान श्री कृष्ण के बचपन का मित्र होकर भी गरीब क्यों रहा…
कथा के माध्यम से अरुण सागर जी महाराज ने बताया कि भगवान श्री कृष्णा का मित्र होना कोई आम बात नहीं है फिर भी सुदामा जी ने अपना और अपने परिवार का जीवन गरीबी में बिताया l दरसल बात उस समय की है जब श्री कृष्ण और सुदामा संदीपनी गुरु के आश्रम में शिक्षा प्राप्त किया करते थे उस समय एक बुढ़िया बड़ी गरीब स्थिति में अपना जीवन यापन किया करती थी जो भगवान नारायण की बड़ी भक्त थी और वह भिक्षा मांग अपना जीवन यापन करती थी l एक दिन उसे भीक्षा मांगते मांगते सांझ हो गई लेकिन उसे भिक्षा नहीं मिली अंत में वह अपनी कुटिया की और वापस आ रही थी तभी उस बुढ़िया को किसी ने कुछ चने दान किए शाम का समय हो जाने के कारण उसने चने एक पोटली में बांध लिए और सोचा अब शाम हो गई है कल सुबह ही भगवान श्री विष्णु को भोग लगाने के बाद वह चने पाएगी l और वह चने की पोटली सिराने रखकर सो गई उस रात में एक चोर बुढ़िया की कुटिया में चोरी करने घुसा उस चोर की नजर पोटली पर पड़ी उसे लगा जरूर इसमें कोइ कीमती वस्तु है वह चोर उस पोटली को लेकर भागते हुए संदीपनी मुनि के आश्रम के सामने से जा रहा था तभी उसे ठोकर लगी जिससे वह पोटली संदीपनी मुनी की कुटिया के पास गिर गई अंधेरे की वजह से वह पोटली उठा नहीं पाया और वह वहां से भाग गया सुबह जब गरीब बुढ़िया ने देखा कि चने की पोटली गायब है तो उसे बहुत दुख हुआ दुखी मन से उसने शराप दे दिया जो भी वो चने खाएगा वह भी मेरी तरह जीवन मे गरीबी और दरिद्रता का भागी होगा l यहां सुबह जब संदीपनी ऋषि की पत्नी को वह चने वाली पोटली मिली तो उन्होंने उसे उठाकर रख लिया आश्रम में जब हवन व भंडारा आदि के लिए लकड़ी लेने श्री कृष्ण और सुदामा जाने लगे तब गुरु मां ने वह पोटली सुदामा को देते हुए कहा इसमें कुछ चने है जंगल में भूख लगे तब चने तुम और कृष्ण खा लेना l सुदामा जी कोई साधारण ब्राह्मण नहीं थे वह साक्षात तप ओर ब्रह्मत्व की मूर्ति थे जैसे ही उन्होंने चने की पोटली हाथ में ली उन्हें आभास हो गया कि यह चने सापित हैं, गुरु मां की आज्ञा अनुसार वह चने की पोटली उन्होंने अपने पास रख ली जंगल में लकड़ी ढूंढते हुए बहुत देर हो गई और बारिश होने लगी और संध्या भी जब दोनों को बहुत जोर की भूख लगने लगी तब पहले तो सुदामा जी ने अपने हिस्से के चने पोटली में से खा लिये और श्री कृष्ण के हिस्से के चैन जब श्री कृष्ण ने मांगे तो उन्हें उसे बुढ़िया का शॉप याद आया की जो चने खाएगा वह जीवन भर गरीब और दरिद्र हो जाए तीनों लोक के स्वामी तीनो लोक के पालन करता यदि गरीब और दरिद्र हो जाए तो तीनों लोको का क्या होगा अपने मित्र को गरीबी और दर्द दरिद्रता से बचाने के लिए श्री सुदामा जी ने श्री कृष्ण के हिस्से के चने भी खुद खा लिए l ऐसे श्री कृष्ण के जीवन में आने वाली गरीबी को उन्होंने स्वयं स्वीकार कर भगवान श्री कृष्ण को गरीबी और दरिद्रता से बचाया श्री कृष्ण के हिस्से के चने मांगने पर श्री कृष्ण से झूठ बोल दिया कि पेड़ पर चड़ते हुए वह पोटली कहीं गिर गई l इस प्रकार श्री कृष्ण के हिस्से की गरीबी और दरिद्रता भी स्वयं उन्होंने अपने ऊपर ले लिया सच्चा मित्र वही है जो मित्र को जीवन में आने वाली विपदा से बचाए इस कारन सुदामा गरीब हुये l
कथा का समापन 1 जनवरी 2024 को हवन भंडारा के साथ पूर्ण होगा l






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